Haryana Election 2024: इसी को कहते हैं, हद कर दी आपने. सच पूछिए तो अब गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड वालों को बिना देर किए हरियाणा आ ही जाना चाहिए और अगर इन्होंने ऐसा कर दिया तो हम दावे के साथ कह रहे हैं उसके इस रिकॉर्ड की चर्चा पूरी दुनिया में एक अलग रिकॉर्ड बनाएगी. जी हां, बीते कुछ सालों में हरियाणा की बीजेपी की सरकार और डेरा सच्चा सौदा का प्रमुख और दुष्कर्म का दोषी राम रहीम रिकॉर्ड बनाने पर तूले हुए हैं. गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड वाले हैं कि इनपर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं.
अगर बेशर्मी शब्द से भी पूछा जाए कि आपको इन दिनों कहां जाकर शर्म आती है तो वो बेशक यही कहेगी कि हरियाणा की बीजेपी सरकार को आखिर क्या हो गया है कि वो बार-बार मुझे यानी बेशर्मी को भी शर्मसार करने पर आमादा है. दरअसल, हरियाणा विधानसभा चुनाव के मतदान से ठीक पहले दुष्कर्म जैसे केस में दोषी और सजायाफ्ता गुरमीत राम रहीम को फिर पैरोल मिल गई है और वो एक बार फिर जेल से बाहर आएगा. राम रहीम अपनी शिष्याओं से दुष्कर्म का दोषी है और 20 साल की सजा काट रहा है.
क्यों होती है मेहरबानी
यहां सवाल ये कि आखिर उसके साथ ऐसी क्या इमरजेंसी हो गई कि उसे फिर से पैरोल लेनी पड़ी और आखिर उसी को इतनी पैरोल की जरूरत क्यों पड़ती है. इसे इस छोटी सी पंक्ति वाली कहावत से समझ जाइए कि सईंयां भए कोतवाल तो फिर डर काहे का. बस हरियाणा की बीजेपी सरकार और राम रहीम के बीच यहीं वो वजह है जिससे राम रहीम पर बार-बार मेहरबानी की जाती है.
जैसा कि राम रहीम को पैरोल इन शर्तों के साथ मिली है कि वो हरियाणा में दाखिल नहीं होगा. किसी भी चुनाव प्रचार की गतिविधि में शामिल नहीं होगा और ना ही सोशल मीडिया के जरिए किसी चुनाव प्रचार का हिस्सा होगा. लेकिन जरा सोचिए कि राम रहीम के लिए इन शर्तों का क्या मतलब रह जाता है क्योंकि राम रहीम चुनाव के वक्त जेल से बाहर आ रहा है तो जिसको जो संदेश देना है या जिस तक ये संदेश पहुंचना है वो तो उसके जेल से बाहर आने की खबर से ही उस तक पहुंच जाएगा. वैसे आपको बता दें कि राम रहीम ने 20 दिन की इमरजेंसी पैरोल मांगी थी. जिसमें ये भी कहा गया था कि वो यूपी के बरनावा आश्रम में रहेगा.
4 साल में 11 बार पैरोल
अब इसे सरकार की मेहरबानी नहीं तो और क्या कहेंगे कि राम रहीम 4 साल में 11 बार पैरोल या फरलो मिल चुकी है. उससे भी गौर करने वाली और दिलचस्प बात ये कि 8 बार तो उसे राहत ठीक चुनाव से पहले मिलती रही है. अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब रोहतक के सुनारिया जेल में बंद राम रहीम ने पिछले ही महीने 2 सितंबर 2024 को 21 दिन की फरलो काटकर जेल पहुंचा था. अब फिर ऐसी कौन सी इमरजेंसी आ गई कि उसे फिर से जेल से बाहर आना पड़ रहा है.
और तो और इस पर भी गौर करना पड़ेगा कि सरकार ने उसके बाहर आने का झट से इंतजाम भी कर दिया. जबकि चुनाव की वजह से आचार संहिता भी लगी है. लेकिन सच भी तो यही है कि राम रहीम को चुनाव को देखते हुए ही पैरोल या कहें तो राहत मिली है जैसा कि पहले भी मिलती रही है. राम रहीम को पिछले दो सालों में 253 दिनों की पैरोल या फरलो की मिली और इसमें मौजूदा 20 दिन की पैरोल भी जोड़ दें तो यह 273 दिन हो जाएगी. यानी राम रहीम 9 महीने से ज्यादा जेल से बाहर रहा या रहेगा.
कब-कब जेल से बाहर आया
चलिए फिलहाल राम रहीम के पैरोल और फरलो जिसकी बदौलत वो बार-बार जेल से बाहर आता है, उसके कुछ आंकड़ों पर नजर डाल लें. राम रहीम को 24 अक्टूबर 2020 को एक दिन की पैरोल मिली जब वो अस्पताल में भर्ती मां से मिलने गया था. इसके बाद मई 2021 को उसे 12 घंटे की पैरोल दी गई, फरवरी 2022 को राम रहीम को 21 दिन की फरलो और यही से राम रहीम को पैरोल और फरलो मिलने का सिलसिला शुरू हो गया.
इसके बाद जून 2022 को 30 दिन की पैरोल, अक्टूबर 2022 को 40 दिन की पैरोल, जनवरी 2023 को 40 दिन की पैरोल, जुलाई 2023 को 30 दिन की पैरोल, नवंबर 2023 को 21 दिन की फरलो, जनवरी 2024 को 50 दिनों की पैरोल, 13 अगस्त 2024 को 21 दिन की फरलो और अब 5 अक्टूबर 2024 को हरियाणा विधानसभा चुनाव में मतदान से पहले 20 दिन की पैरोल मिली है.
यहां गौर करने वाली बात ये है कि ज्यादातर समय राम रहीम को पैरोल या फरलो तब मिली जब कहीं चुनाव या उपचुनाव हुए. चाहे वो विधानसभा के चुनाव हो, लोकसभा चुनाव हो या फिर स्थानीय निकाय के चुनाव हो. राम रहीम को इसी समय पैरोल या फरलो मंजूरी मिलने को लेकर अब कहने को क्या ही बच जाता है.
इन इलाकों में प्रभाव
दरअसल, माना जाता है कि हरियाणा में डेरा सच्चा सौदा का सिरसा, कुरुक्षेत्र, फतेहाबाद, चरखी दादरी, कैथल, हिसार, करनाल, भिवानी, पानीपत, अंबाला इलाके में प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर अच्छा-खासा प्रभाव है. इसके तहत करीब 35 विधानसभा सीटों आती हैं और बीते लोकसभा चुनाव में डेरा सच्चा सौदा ने बीजेपी का समर्थन करने का ऐलान किया था. यानी राम रहीम का रसूख ही ऐसा है कि हरियाणा की बीजेपी सरकार या कहे तो दूसरी सरकारें भी जानती है कि राम रहीम को हल्के में लेना भारी पड़ सकती है.
यानी कोई माने या न माने देश में राम रहीम जैसा वीवीआईपी अपराधी और हरियाणी की बीजेपी सरकार जैसी अनोखी सरकार नहीं देखी होगी जो किसी दुष्कर्म और मर्डर के सजायाफ्ता पर इस कदर मेहरबानी करती आ रही है और ताज्जुब तो तब भी होता है जब बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व भी इसपर मौन ही रहता है. आखिर राम रहीम का ऐसा कौन सा एहसान है जो हरियाणा की बीजेपी सरकार चुकाए नहीं चुका पा रही है.
नाराजगी जता चुका हाईकोर्ट
हमें याद आता है कि संजय दत्त को भी इसी तरह फरलो और पैरोल मिलती रहती थी जिसपर भी सवाल उठते थे लेकिन राम रहीम तो सबसे अलग है. यहां सवाल ये भी कि इस देश में लाखों लोग अलग-अलग जेलों में सजा काट रहे हैं. कुछ कैदी तो ऐसे भी है जिनके माता-पिता गुजर गए, बेटा गुजर गया या कोई बड़ी इमरजेंसी आ गई तब भी उसे कितनी पैरोल या फरलो मिली ये बताने की जरुरत नहीं. यहीं नहीं ये कानून से जुड़ा मामला भी है.
राम रहीम को बार-बार पैरोल और फरलो दिए जाने को लेकर एक बार पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट नाराजगी जता चुका है. ऐसे में अब समय आ गया है कि सुप्रीम कोर्ट को इस तरह के मामलों में स्वत: संज्ञान लेकर पैरोल और फरलो को लेकर कोई गाइडलाइन जारी करना चाहिए, जिससे कोई भी सरकार संस्था या सिस्टम इसका दुरुपयोग करने की कल्पना भी न कर सके. क्योंकि राम रहीम के मामले में ये सीधे-सीधे सिस्टम का दुरुपयोग है.