Manmohan Singh Death: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भारत में आर्थिक सुधारों के जनक, लाइसेंस राज खत्म करने और देश को उस स्थिति से निकालने के लिए जाना जाता है कि जब स्वर्ण भंडार भी गिरवी रख दिया गया था. एक दिग्गज नेता के तौर पर पहचान बनाने वाले डा. मनमोहन सिंह मौजूदा भारत के शिल्पकार और विद्वता के धनी इंसान थे. उनका निधन गुरुवार रात दिल्ली के AIIMS में हो गया. उन्होंने 92 साल की उम्र में अंतिम सांस ली.
उन्होंने 2004-2014 तक 10 सालों तक प्रधानमंत्री के तौर पर देश का नेतृत्व किया. उससे पहले वित्त मंत्री के रूप में देश के आर्थिक ढांचे को तैयार करने में मदद की. उनकी सरकार ने आधार कार्ड, सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार और मनरेगा जैसी बेहतरीन योजनाएं शुरू की गई. मनमोहन सिंह ने अभावों के बीच अपने जीवन की शुरूआत की थी.
अभावों के बीच जीवन
कभी बिजली से वंचित अपने गांव में मिट्टी के तेल के दीये की रोशनी में पढ़ाई करने वाले मनमोहन सिंह आगे चलकर एक प्रतिष्ठित प्रोफेसर बने. सोनिया गांधी ने अपनी पार्टी के अनुरोध के बावजूद प्रधानमंत्री पद स्वीकार करने से इनकार कर दिया और उन्होंने इस शीर्ष पद के लिए मनमोहन सिंह को चुना. अकादमिक नौकरशाह मनमोहन सिंह 2004 में भारत के 14वें प्रधानमंत्री बने.
पहली बार 22 मई 2004 को और फिर दूसरी बार 22 मई, 2009 को मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. मनमोहन सिंह ने 10 साल तक देश का नेतृत्व किया. उनका संतुलित दृष्टिकोण यूपीए सरकार के बाकी सहयोगी दलों के साथ भी नजर आया. तमाम राजनीतिक तनावों के बावजूद पूर्व पीएम गठबंधन के धर्म को निभाने में कामयाब रहे.
सराहना और आलोचना के बीच रहे पूर्व पीएम
साल 2014 में भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोप के बीच यूपीए को सत्ता से बाहर होना पड़ा, जिसके बाद से बीजेपी की केंद्र में सरकार है. 1990 के दशक की शुरुआत में भारत को उदारीकरण और निजीकरण की राह पर लाने के लिए मनमोहन सिंह को हमेशा सराहा जाता रहा. लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों पर आंखें मूंद लेने के लिए उनकी आलोचना भी की गई.
प्रधानमंत्री के रूप में उनके पहले कार्यकाल के दौरान जब भारत ने अमेरिका के साथ एक असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए. तब स्थिति बिगड़ी और सहयोगी दलों ने गठबंधन से अलग होने के संकेत दे दिए. लेकिन वाम दलों के यूपीए से बाहर जाने पर अल्पमत का खतरा आया फिर टल गया. यूपी ने विपक्ष के 256 वोट के मुकाबले 275 वोट हासिल करके विश्वास मत जीता.
हमेशा नीली पगड़ी में आए नजर
प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में जब उन्हें 2जी घोटाले जैसे विवादास्पद मुद्दों पर अपनी सरकार के रिकॉर्ड और कांग्रेस के रुख का बचाव करते देखा गया. तब मनमोहन सिंह ने पुरजोर शब्दों में अपनी बात रखी और घोषित कर दिया कि वह कमजोर नहीं हैं. हमेशा नीली पगड़ी में नजर आने वाले सिंह को 1991 में नरसिम्हा राव सरकार में भारत का वित्त मंत्री नियुक्त किया गया था.
आर्थिक सुधारों की एक व्यापक नीति शुरू करने में उनकी भूमिका का दुनिया ने लोहा माना. जनवरी 1991 में, भारत को अपने आवश्यक आयात, विशेष रूप से तेल और उर्वरकों के आयात, और आधिकारिक ऋण चुकाने के लिए संघर्ष करना पड़ा. जुलाई 1991 में, RBI ने 40 करोड़ अमेरिकी डॉलर जुटाने के लिए बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक ऑफ जापान के पास 46.91 टन सोना गिरवी रखा.
इन पदों पर रहे असरदार
मनमोहन सिंह ने जल्द ही कुशलता के साथ अर्थव्यवस्था की कमान संभाली और कुछ ही महीनों बाद तुरंत उसे पुन: खरीद लिया. उन्होंने ‘यूएनसीटीएडी’(अंकटाड) सचिवालय में भी कुछ समय तक काम किया और बाद में 1987 और 1990 के बीच जिनेवा में ‘साउथ कमीशन’ के महासचिव बने. साल 1971 में वह भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में शामिल हुए.
इसके तुरंत बाद 1972 में वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में उनकी नियुक्ति हुई. उन्होंने जिन कई सरकारी पदों पर काम किया उनमें वित्त मंत्रालय में सचिव; योजना आयोग के उपाध्यक्ष, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष के पद शामिल हैं.