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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने किसकी नींद उड़ा दी? जानिए क्या कहा

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A पर अहम फैसला सुनाते हुए इसकी वैधता को बरकरार रखा है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने 4:1 के बहुमत से ये फैसला सुनाया है. जो असम समझौते को मान्यता देता है.

सुप्रीम कोर्ट ने आज जो फैसला सुनाया वो काफी महत्वपूर्ण है और ये फैसला जिस संवैधानिक बेंच ने सुनाया है, उसमें चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस सुंदरेश, जस्टिस मनोज मिश्रा ने इसकी वैधता को बरकरार रखा जबकि जस्टिस जेपी पारदीवाला ने इससे असहमति जताई. दिसंबर 2023 को सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसपर फैसला सुरक्षित रखा था.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि असम समझौता अवैध शरणार्थियों की समस्या का राजनीतिक समाधान था और इसमें धारा 6A विधायी समाधान था. सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि 6A के तहत 25 मार्च, 1971 की कट ऑफ तारीख सही थी, क्योंकि यह वो तारीख थी जब बांग्लादेश युद्ध खत्म हुआ था ऐसे में इस प्रावधान के मकसद को बांग्लादेश युद्ध की पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए.

वहीं सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि धारा 6A न तो कम समावेशी है और न ही अधिक. कोर्ट ने यह भी माना कि असम को बांग्लादेश के साथ बड़ी सीमा साझा करने वाले अन्य राज्यों से अलग करना तर्कसंगत था, क्योंकि असम में स्थानीय आबादी में अप्रवासियों का प्रतिशत अन्य सीमावर्ती राज्यों की तुलना में अधिक था. असम में जहां 40 लाख प्रवासी हैं और पश्चिम बंगाल में 56 लाख प्रवासी हैं.

इस दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि रजिस्ट्रेशन भारत में नागरिकता प्रदान करने का वास्तविक मॉडल नहीं है और धारा 6ए को सिर्फ इसलिए असंवैधानिक नहीं माना जा सकता क्योंकि इसमें पंजीकरण की प्रक्रिया निर्धारित नहीं की गई है, इसलिए मैं भी इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि धारा 6ए वैध है.

क्या है मामला?

नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A के मुताबिक जो बांग्लादेशी अप्रवासी 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 तक असम में आए हैं, वो भारतीय नागरिक के तौर पर खुद को रजिस्टर करा सकते हैं. यानी 25 मार्च 1971 के बाद असम आने वाले विदेशी भारतीय नागरिक नहीं होंगे.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया था कि 1966 के बाद से पूर्वी पाकिस्तान जो अब बांग्लादेश है, वहां से अवैध शरणार्थियों के आने के चलते राज्य का जनसांख्यिकी संतुलन बिगड़ रहा है और राज्य के मूल निवासियों के राजनीतिक और सांस्कृतिक अधिकारों का हनन हो रहा है. याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि धारा 6A अनुच्छेद 14, 21 और 29 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है.

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साथ ही ये अनुच्छेद 325 और 326 के तहत प्रदत्त नागरिकों के राजनीतिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. साथ ही याचिका में ये भी कहा गया था कि सरकार ने नागरिकता अधिनियम 1955 में 6A जोड़कर अवैध घुसपैठ को कानूनी मंजूरी दे दी है. इस समझौता अगस्त 1985 को तत्कालीन राजीव गांधी सरकार और असम आंदोलन के नेताओं के बीच हस्ताक्षर से हुआ था और तब इसका उद्देश्य असमिया संस्कृति, विरासत, भाषाई और सामाजिक पहचान को संरक्षित और सुरक्षित रखना था.

अनुच्छेद 29(1) का उल्लंघन नहीं- CJI

आपको बता दें कि इस दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का ये भी कहा कि किसी राज्य में विभिन्न जातीय समूहों की उपस्थिति का मतलब अनुच्छेद 29(1) का उल्लंघन नहीं है. याचिकाकर्ता को यह साबित करना होगा कि एक जातीय समूह दूसरे जातीय समूह की उपस्थिति के कारण अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा करने में सक्षम नहीं है.

वैसे देखा जाए तो दिसंबर 2023 में नागरिकता अधिनियम की धारा 6A से जुड़ी 17 याचिकाओं पर 5 जजों की बेंच ने सुनवाई शुरू की थी. इससे पहले दो जजों की बेंच ने 2014 में इस मामले को कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच के पास भेजा गया था. इस दौरान केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि भारत में विदेशियों के अवैध प्रवास की सीमा के बारे में सटीक आंकड़े उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं होगा. बहरहाल, अब नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला आ गया है ऐसे में अब इसे लेकर किसी तरह का संदेह नहीं रहेगा.

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